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भटकती आत्मा भाग - 35

  

      भटकती आत्मा भाग- 35

सूरजवास्‍तु स्थली पर मैंगनोलिया आवासीय आवासीय हुई थी। कुछ दूरी पर घोड़ा एक पेड़ से बंधा था। मैगनोलिया बेकरारी से इंतजार कर रही थी अपनी मुहब्बत के फरिश्ता का। बार-बार उसकी दृष्टि दूर-दूर तक जाती है जंगल के मध्य बनी पगडंडी पर चली जाती है, फिर नैराश्य तैरती है उसकी मानस सागर में।
दोपहर का सूर्य गगन के मध्य खिलखिला कर हंस रहा था। असलियत अपनी प्रेयसी वसुधा को टकटकी बांधे देखने जा रही थी। अपने चंचल करों से उसके शरीर को गुदगुदाया जाता था,वसुधा शर्म से श्वेत हो रही थी।
     इस समय वन प्रांत का शांत माहौल और रमानिक व्यू मैगनोलिया को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था। सब वैकल्पिक लग रहा था उसे। कभी-कभी चंचल पवन अपने बालों को हिला देती है,कपोल पर चित्राए लटों को वह अपने हाथों से हटा देती है। उसके मुख पर व्याग्रता झलक रही थी। कभी-कभी घोड़ों की हिनहिनाहट मैगनोलिया के मन को खिन्न कर देता था। अचानक एक पत्थर का टुकड़ा उसकी चोटी ही कहीं से गिर गया। मैगनोलिया हडबरागे एल हेसेसे लिफ्ट लिया गया। इसमें एक कागज़ बंधा था। कुतूहल वश शेहेसा ईसाई धर्म में लिखा था - "योर माइकल"।
साथ ही उसकी नजरें इधर-उधर किसी को फिर से लग गईं, परंतु कहां था, माइकल! माथा पकड़ कर बैठ गया वह-   
      "ओह कैसी पहेली है"!
कुछ ताजातरीन के बाद पेज ध्वनिक कर्ण रंध्रों में प्रवेश करने लगी। अपनी नज़रें मैगनोलिया ने देखा -  
   "अरे ये तो कोई संत लग रहा है, फिर मेरी और लंगड़ाते क्या करने आ रहे है"?
  घबड़ाहट एक क्षण के लिए मुख पर छप गया, फिर भी वह अपने को संयमित करती है गंभीर बनी रही एल
    "अलख निरंजन! बच्चा इस घनघोर जंगल में क्या कर रही हो"_ साधु ने कहा।
  मैगनोलिया साझीदार रह गई |
  "लगता है किसी की प्रतीक्षा कर रही हो बच्चा"!
   "मैं आपको कुछ भी बताता हूं क्या? मैं अपना रास्ता देखूंगा।"
   "नहीं बच्चा नहीं! वह नहीं आ रहा, जिसे ढूंढ रही हो।" 
मैगनोलिया उसकी बातों से घबड़ा गया, साथ ही गुस्से में मुंह बना लिया।
   "घबड़ाओ नहीं बच्चा, मैं सब गायब हूं। किसी से प्रेम व्यापार चल रहा है ना"!
  "साधु महाराज,आप अपना रास्ता नापिये।"
   "अरे इसमें गुस्सा करने की क्या है बच्चा! अगर प्रेमिका प्रेमी से बात नहीं हुई तो क्या हुआ, मैं शामिल हूं मुझसे प्यार कर सकती हूं।"
   "आइडियट, लोफर, लुच्चा, लफंगा मैं तुम्हें पत्थरों से मारता हूं" - चिल्लाई मैगनोलिया।
  नहीं-नहीं ऐसा नहीं कहता बच्चा! देखिये मैं प्रेमी के जैसा नहीं हूं क्या? एक पैर लंगड़ा है तो क्या हुआ,दिल तो प्यार के लिए मचल रहा है।"
  "नॉनसेंस" - कहने वाली मैगनोलिया ने एक पत्थर का स्तंभ खोला। लेकिन उस रबर से संभल कर दूसरी दिशा में खड़ा होना जारी था वो साधु। मैगनोलिया पैर पटकती चट्टान से खड़ी हुई, फिर एक ओर चल पड़ी। साधु तेजी से झपटा और उसकी कलाई पकड़ ली,फिर से बच्चे ले लिया। सहसा दो-तीन संगीत तड़ातड़ साधु के गॉल पर अपलोड किया गया। साधु ने अपना हाथ ठीक कर लिया। मैगनोलिया ने क्रोध पूर्ण उत्सवों से क्षणभर देखा और फिर पेज बढ़ाने लगी। साधु दौड़ता हुआ मैगनोलिया के आगे खड़ा हो गया, फिर से चुना से उसने कहा - 
   "बच्चा! लड़की भाग्य वज़ह चल रही है। किसी से जल्दी ही शादी होने वाली है, लेकिन वह प्रेमिका नहीं है! मैंने ठीक कहा ना बच्चा"! 
मैगनो मैगलिया आश्चर्य सीदेखा लगी। फिर उसने सुना - 
लेकिन इस शादी से तुम्हारी ख़ुशी नज़र नहीं आती, बच्चा ऐसा क्यों"?
  मैंगनो चिल्लाई - "नहीं मैं किसी के साथ शादी नहीं कर सकती, मेरा प्यार सच्चा है, अपने देवता को नहीं छोड़ा जा सकता"?
  "और वह देवता कौन है, बच्चे"! - साधु ने पूछा।
  मैगनोलिया चुप ही रही। सहसा साधु ने कहा -  
     "मैं देवता हूँ डियर"!
  "नहीं-नहीं, तुम नहीं हो सकते! भगवान के लिए तुम मेरी नज़रों से दूर हो जाओ। मेरी जिंदगी, मेरे प्राण सब कुछ तो माइकल है, मिकेल" - अपने आप से बोल मैगनोलिया।
   "मैं हूं बाइबिल माइकल! डायर! देखो" - कहा गया साधु ने अपनी आस्था-मूंछ उखाड़ फेंकी। मैगनोलिया ने देखा - यह तो उसका प्रिय मनकू साधु के रूप में खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है ! भावना के वशीभूत हो मैगनोलिया ने दौड़कर मनकू को अपने सीने से लगा लिया, फिर आंखों से सावन-भादो सा पानी बरसाने लगा। कुछ देर बाद मनकू के हाथों को अपने हाथों में लेकर उठी मैगनोलिया ने कहा- "तुम साधु बनकर आओगे तो मुझे असली बना ही दिया था डायर"।
   "ओह! उसने सोचा, इतने दिन बाद अपनी प्रेयसी से क्यों मिलूंगा; न कुछ नाटक ही किया जाए।"
   "इतने दिन तक तुम कैसे और कहां रह रहे थे? मेरा दिल था कि तुम मरे नहीं,जिंदा हो,तब भी मैं भी बच गया।"
  "तुम्हारे साथ कैसी घटना घटी थी, मैंगनोलिया"?
  "बताऊंगी, सब कुछ बताऊंगी। पहले तुमने बताया था, तुम्हारे साथ क्या हुआ था, अब तक कहां थे"?
  क्षितिज के छोरों पर आकाश और वसुधा में मिल रहे थे वहां मनकू और मैगनोलिया में भी शामिल हो रहे थे।
  एक कर सारी घटना मनकू मांझी ने मैंगनोलिया से कह चर्चा। मैगनोलिया के दिल में सोख्ता सारे दु:ख पानी जैसी दिखने वाली लहरें बिखेरते जा रहे थे। कुछ देर बाद मैगनोलिया ने अपने साथ घटी सारी बातें मनकू से कहा। मनकू माँझी की सारी मिथ्यादृष्टि दूर हो गई थी, और अब वह फिर से जीने की चाहत को अपने दिल में महसूस कर रही है। वे दोनों सारी जिंदगी एक जैसे मिले। लेकिन यह क्या संभव है? मैगनोलिया की शादी दो दिन बाद हो रही है, फिर कैसे मिलेंगे दोनों? यह प्रश्न मनकू के मन को झकझोरने लगा। मनकू ने यह खतरनाक मैगनोलिया को बताया। उसने हंसते हुए कहा - 
   "मैं शादी करुंगा ही नहीं डियर,फिर यह संकट कैसा"?
   "क्या यह संभव है"? - मनकू ने पूछा।
"क्यों नहीं, मैं मर जाना पसंद करूँ लेकिन यह शादी नहीं करूँ। पापा को मेरी जिद पर दिखाना चाहता हूँ।"
बड़े विश्वास के साथ मैंगनोलिया ने कहा. मनकू मुस्कुराता रह रहा है। फिर बातें-बातों में कैसे संध्या सुंदरी का धूमिल आंचल वसुधा पर निकला, पता ही नहीं चला। मनकू माँझी मैगनोलिया से विदा लेकर अपने वास्तविक रूप में ही रनिया भट्टियों की ओर चल दिया। अब वह अपने प्रति समर्पण में ही सहमत समझ रहा था कि मैं मैगनोलिया मनकू मांझी को ठीक नहीं करना चाहता था, परंतु बुझे दिल से अलग होना ही पड़ा।
              
  
          - × - × - × -



         घोड़े से उतरकर मैगनोलिया ने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई, कलेक्टर वाले साहब लोन में बैठे दृष्टिगोचर। हर्षाटिरेक में मैंगनोलिया रेसिंग पैड, और बॉम्बे के गले में प्यार से बाहें डाल दी। इस अप्रत्याशित बात से पादरी साहब खुश हुए,कितने दिन बाद उनकी बेटी खुश नजर आ रही थी।
   "बहुत खुश नज़र आ रही हो बेटी, कहाँ गयी थी"?
  "मैं - मैं पापा जंगल में घूमने के लिए निकल पड़ा, बड़ा मजा आया"।
   "मैं तो हमेशा चकित रह गया था,बेटी! इधर-उधर घूम आओ,मन बहलोगे तुम सहयोगी ही नहीं थी।"
कुछ देर तक भूखे रहने के बाद फिर छोटू साहब ने पूछा - "क्या जंगल में कोई खास बात हुई थी"?
  "नहीं पापा, विशेष क्या होगी मन ताज़ा हो गया यही समझे" - असली वजह छुपी थी मैगनोलिया। 
मिस्टर जॉनसन गेट से अंदर प्रवेश करते हुए दिखाई दिए। डॉक्टर साहब ने कहा- 
"आओ मिस्टर जॉनसन, आज मेरी बेटी बहुत खुश है। बहुत दिनों के बाद उसकी खुशियाँ लौट आई हैं।"
  "हां - हां क्यों नहीं, गुड विशेज़ टू यू मैगनोलिया" - वैंग के साथ मिस्टर जॉनसन ने कहा।
मैगलिया का मन मिस्टर जॉनसन की उपस्थिति से खिन्न हो उठा, वह कमरे की तरफ चल पड़ा। उसे क्या पता था कि उसकी गुप्तचर कंपनी मिस्टर जॉनसन का कुछ दूर तक पीछा कर रही थी। उसे जंगल में देख शकित हो उठा था,और जब मैगनोलिया जंगल की ओर गया तो बहुत देर हो गई,तब उसका मन और उठ गया। वह भी इधर-उधर घूम कर जंगल में यूँ ही चला गया, और फिर एक तस्वीर के पीछे छुप कर उसने मनकू माँझी और मैगनोलिया को ही देखा। मनकू माँझी के सौभाग्य पर आश्चर्य तो हुआ ही था, परन्तु क्रोध भी सिर उठा रहा था, इसलिए वहाँ से लौट आया दबे। यह बात उसने आम आदमी से नहीं कही, मन ही मन कुछ कहा, फिर गंभीर हो उठा। पुजारी साहब के नामांकन पर लोन में बैठे उनके साथ ताश का काम लगा।



         - × - × - × -

मनकू माँझी को देखकर गाँव के लोग बहुत प्रसन्न हुए, इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि बिना नशे के ही झूमने लगे। जब मनकू माँझी ने मौत के मुंह से निकल आने की कहानी लोगों से कही, तो उन लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। जानकी के बारे में मार्केटप्लेस में बताया गया कि उसके गले में चोट लग गई, मनकू मांझी का भाई दौड़ गया और मनकू के लग कर बहुत रोया। इस गांव के सरदार के पास कर्णश्रुति के माध्यम से जा बात। वह उम्रदराज़ दौड़ा आया, वह मनकू माँझी को देखकर प्रशंसा व्यक्त की। हेहेरा ने बहुत सारी कलाकृतियों की कोशिश की। उन्होंने कहा कि जिस मेम के प्रेम में फंसा करन्से की मौत हो गई थी, उसे भूल जाना ही बेहतर होगा। गांव वाले उस ब्रिटिश सामान से लोहा तो ले नहीं सकते,फिर किस बलबूटे पर उनकी लड़की से प्यार हो जाए। मनकू को ऐसा कोई कदम अब नहीं उठाना चाहिए, जिससे फिर यातन के कारोबार में फंसना पड़े। सरदार ने कहा कि अब तो वह स्वयं बूढ़ा हो गया है इसलिए उसके उत्तरदायित्व मनकू को ही सहारा देना होगा, क्योंकि गांव में वह साहसी और गुणवान जैसा नहीं है, परंतु मनकू मांझी के मन में कुछ और ही था। वह सज्जन सरदार बनने के लोभ में फसने क्यों गए? प्रेम के नशे में वह इतनी उन्मत्त हो गई थी कि किसी भी हालत में मैगनोलिया को भूलने के पक्ष में नहीं थी। वह कार्य सरल भी तो नहीं था। प्रेम ही जीवन है,यह प्राणों से ऊंचा है,इसको भी कोई भूल हो सकती है? फिर मनकूब का प्रयास भी भूलने में असमर्थ नहीं हो पा रहा था। उनका विचार था कि अब वह गांव में रहेंगे,खेती-बबड़ी सहायक उपकरण और प्रेम का सफर भी निर्वाह तय करते रहेंगे। मैगनोलिया तो अब किसी भी हालत में मिस्टर जॉनसन से शादी ही नहीं, फिर तो वह मनकू के जीवन का सहारा है, निराशऔर होने की कोई बात नहीं। सरदार की बात जरा भी अच्छी नहीं लग रही थी, अरे मैगनोलिया से शादी नहीं होगी तो क्या हुआ,जिंदगी भर प्यार करते हुए ही संतोष कर लिया। शादी ही तो प्यार की मंजिल नहीं होती।
  वह दूसरे दिन जानकी से मुलाक़ात के लिए अपने तस्करों के पास गई थी, उससे मुलाकात बहुत जोरों से हुई थी। जानकी के स्कूल में ही उनके पति मिले थे, फिर भी जानकी के जीवन में कोई समस्या नहीं रही। जानकी मुस्लिम में बहुत ख़ुशी थी। अब मनकू को कोई भार नहीं मिला, उसके परिवार को आश्चर्यचकित करने के लिए उसके छोटे भाई ने समर्थन किया, उसने सब कुछ जोड़ा। वह अपने जीवन डगर पर निश्चिन्तता से आगे बढ़ सकती थी।
  जानकी अपनी दावत से मनकू को इतनी जल्दी वापस नहीं आना चाहती थी। उस रविवार के दिन मनकू को देखने के लिए तैयार हो गई।


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"बेटी कल शादी है, आज खरीदारी कर लो। जरूरत है कि सारी खरीद लो बेटी" - उपभोक्ता साहब ने कहा।
  "पापा मैं तो तुम्हें कहती हूं कि मैं यह शादी नहीं करूंगी" - मैगनोलिया ने कहा।
  "लेकिन एक महीना पहले चाहा तो शादी के लिए बदलाव दिया गया था।"
  "उस समय कुछ और बात पापा, मैं मर गया था। मेरी सोच समझ की शक्ति ही खत्म हो गई थी। अब मेरे मन में जीने की इच्छा जाग गई है। अब मेरा दिल आपके वश में है। मैं प्रकृतिस्थ हो गया हूं।" ,इसलिए अब यह शादी नहीं कर सकती। आप सोचिए पापा मैं माइकल के किलर जॉनसन से शादी कैसे कर सकती हूं''!
    "और मैंने अपने जो दोस्त को अपने दोस्त में कह दिया है। गिरजाघर के पादरी से भी कहा जा चुका है, अब इस विवाद में मेरी कितनी बदनामी होगी, इस पर भी ध्यान दिया गया है"?
"मैं वह सब कुछ नहीं कहता, अगर आप मुझे खुश रखना चाहते हैं, जीवंत देखना चाहते हैं, तो इस शादी को रोक दीजिए, पापा! रोक दीजिए" - रोने लगी थी मैगनोलिया।
   "मैं कोई बात नहीं सुनूंगा, शादी करेगी, जरूर होगी। तुम खरीदारी के लिए नहीं जाओगे तो मत जाओ, मैं खुद ही कर लूंगा" - पादरी साहब ने गुस्सावेस में कहा।
   मैगनोलिया एंग्रीटायरेक में अग्नेय दृष्टि से मिस्टर जॉनसन को देखने लगी। लेकिन उसने उसे इस तरह से देखा जैसे वह उसकी सहायता करना चाहता था, लेकिन डॉक्टर साहब के सामने कुछ कह नहीं पा रहा था। मैगलिया अच्छी तरह से प्रमाणित था वह दयालु क्यों उसकी सहायता करने लगा, वह तो यही चाहता था, इसलिए खड़ा-खड़ा मुस्कुरा रहा था। मैगनो ने अपनी घृणा से फेर लींऔर अपने कमरे की ओर चला गया।



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     मैगनोलिया अपनी साड़ी पर चढ़ी-पड़ी सोच रही थी कि पापा जबरदस्ती उसकी शादी करवाना चाहते हैं, मिस्टर जॉनसन का नशा सवार है, कोई भी हालत में वे नहीं मानेगा। फिर इस परेशानी से कैसे निबटा जाए। वह क्यों न मनकू माँझी के साथ कहीं भाग जाए, फिर कुछ दिन बाद लौट आएगी। पापा किसी तरह माफ़ी कर ही देंगे। अब मात्रा यही मैग मेनोलिया को संगति रह रही थी। वह जल्द ही मनकू माँझी से मिलने के लिए उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करने लगी। कल तो शादी है, इसलिए आज ही रात में भागना ठीक रहेगा। शाम को छुट्टी का उतार कर मैंगनोलिया घर से निकल पड़ा। रजिस्ट्रार साहब ने अनिच्छा सेसचेंज दे दी थी, परंतु मिस्टर जॉनसन ने मना कर दिया था। उसने भाँप ने लिया कि मैंगनोलिया मनकू माँझी से लेकर प्रारंभिक चरण की योजना बनाएगी, छिपकर गुप्तचरी करने की ठानी। उन्होंने अपने खतरनाक हजरत साहब को बताया लेकिन मनकू मांझी के जीवित रहने की बात उन्होंने नहीं बताई।
  यहां मैगनोलिया जंगल के उस चट्टान पर सर्प, जहान लड़की दोनों मिलती थीं। मनकू माँझी को वहाँ नहीं पैदल शीघ्रता से अपने अश्व को दौड़ती हुई रनिया भट्टियों की ओर चल पड़ा। गाँव में पहुँचकर मनकू माँझी के बदले उसके भाई से मुलाक़ात हुई। मनकू माँझी जानकी की शादी हो गई, जानकर मैंगनोलिया का ब्रेकअप हो गया। कब आये ये भी पता नहीं चला. फ़ास्ट बर्ड मैगनोलिया ने सोचा कि क्यों न वह स्वयँ यात्रा ही भाग जाए। दो दिन के बाद पहुंच जाएगा,कोई न कोई छोड़े गए पादरी साहब से क्षमा मांगेगा। शादी का समय भी तय रहेगा। वह यही सोच कर अपना घोड़ा अज्ञात पथ की ओर दौड़ गई। वह अपना घोड़ा बेताशा खोई हुई थी, घोड़ा बेताशा दौड़ते हुए चली जा रही थी। हटत एक जीप अपने मार्ग पर रुक गई। घोड़ा उतार ले उड़ान का मार्ग अवरूद्ध हो गया था, अब वह खींची और घोड़े से उतराई पैड लगा लिया। मिस्टर जॉनसन जीप से उतरा और मैगनोलिया को जीप में पटक दिया। मैगनोलिया कुछ भी नहीं समझ पाया, बहुत जल्द यह सब कुछ हो गया कि प्रकाशक का वक्ता ही नहीं मिला। फिर तो जीप आगे बढ़ गई। मैगनोलिया ने देखा कि जीप सवार साहब स्वयं चल रहे हैं, मिस्टर जॉनसन शायद ही घोड़ा पर जा रहे थे।


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"यह रेशमी गांव लोनो मांग्लिया आज तुम्हें सब उजला पसंद ही पसंद होगी बेटी।"
रजिस्ट्रार साहब ने कहा कि, रातभर पूरे इसी कमरे में बंद रखा गया था। मैगनोलिया कुछ खाया भी नहीं था, वह रात भर रोटी रही थी।
कुछ देर बाद रिचर्ड साहब ने हुंकार कर कमरे में देखा, मैगनोलिया में बनी स्कर्ट पर रखी थी कपड़े, उसने नहीं पहने थे कपड़े। गुस्से से कांपने लगे किसान साहब। उन्होंने चाबी लेकर कमरा खोल दिया, फिर उन्होंने कहा कि बेटी यह जिद ठीक नहीं है, तुमको आज शादी की तैयारी ही करनी है।''
  "मैं तैयार नहीं होऊंगी, मेरी मौत के साथ ही आप मिस्टर जॉनसन की शादी कर सकते हैं।"
"तुम शादी की तैयारी करोगी, या नहीं - मैं केवल एक शब्द चाहता हूँ" - आवेश में दुकानदार साहब ने पूछा।
  "नहीं - नहीं - कभी नहीं" - चिल्लाती हुई मैगनोलिया ने कहा।
पुजारी साहब पलट गए। कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा - "यह क्या है तुम देख रही हो! या तो तुम हां कहो, या मेरा मृत शरीर देखो" - बुजुर्ग साहब ने बंदूक की नोक से अपने सीने की ओर कुच कर ट्रेगर दबाना चाहा 
मैगनोलिया ने तुरंत ही बंदूक झपट कर एक और फेंक दिया। उन्होंने कहा- "नहीं पापा आप नहीं मरेंगे, मैं आपको मौत नहीं दूंगा।"
"तो फिर शादी के लिए तैयार हो जाओ बेटी"- उपभोक्ता साहब ने रुंधे गले से कहा।
  मैगनोलिया रोटी हूं श्वेत चित्र जैसे तैसे कहानियां लगी, फिर अन्य रेस्टलों कस्टम होने लगे। कोई विशेष व्यक्ति बंगले में उपस्थित नहीं थे, सब स्थान गिरजाघर में प्रतीक्षारत थे। उन लोगों को सम्मिलित रूप से आमंत्रित किया गया था। मैगनोलिया बुज़े दिल से वस्त्र परिधान के बाहर और लॉन में बैठे।



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मनकू माँझी का मुँह अँधेरा ही जानकी की दावत से चल पड़ा था। वह जब घाटी में पहुंचा तब उसने कलुआ कोडाक पाया। रजिस्टर साहब का यह सेवक यहाँ क्यों खड़ा है - मनकू माँझी को विग्रह हुई। उसके निकटतम अपॉइंटमेंट ने पूछा - 
  "कहो भाई कलुवा यहाँ क्यों बने हो "?
"भैया मनकू मैं बस्ती गया था,वहाँ पता चला कि तुम जानकी की यात्रा पर गए थे, फिर मैंने सोचा कि आज तुम वापस आओगे, क्योंकि आज मैगनोलिया के भाग्य की परीक्षा होने वाली नहीं है! इसलिए यहाँ जाना रुका हो गया.''
  "क्या बात कर रहे हो कलुआ? कैसा परीक्षण! तुम चिंतित क्यों हो गए"?
   "क्या कहूं भैया, मैगनोलिया तो कल भागी जा रही थी! लेकिन साहब नेसे पकड़ कर बंगले में बंद कर दिया। आज बंदूक की नोक पर शादी के लिए तैयारी कर ली है।"
  "नहीं कलुआ तुमको काल्पनिक हुई है, वह शादी नहीं करेगी"|
"मैं क्या बताऊँ भैया, वह सफ़ेद कपड़ों में सजी हुई गिरजा घर जाने वाली है।"
  "अच्छा"! चमत्कारी सा मनकू माँझी ने कहा। फिर कलुआ के दर्शन- ही-देखते अपनी कमीज़ की जेब से। कल्हूर देखकर कलुआ घबड़ा गया, उसने कहा - 
   "अरे-अरे, ये क्या करते हो भैया"।
   "तुम प्यार के व्यापार को नहीं समझोगे भाई, घबड़ाओ नहीं, मैं यहां नहीं मरूंगा।"
फिर मनकू ने अपने हाथ के टुकड़े से अपने हाथ के टुकड़े को चीर दिया l रक्त की धारा प्रवाहित की l मनकू ने शांत मन से ही जंगल के एक सफेद चौकोर पत्ते को टुकड़े टुकड़े कर दिया,फिर उसने ही अपने हाथ के टुकड़े से अपने खून के पत्ते पर कुछ लिखा और कलुआ को थमा दिया दिया एल कलुआ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखें एल
  "देखो क्या कर रहे हो भाई! जाओ, ऐसे भी हो मैगनोलिया को यह दे देना एल दौड़ कर जाओ, कहीं मेरा प्यार प्यार दूर न हो जाए"|
  मनकू कहता हुआ दौड़ने लगा | इधर कलुआ भी दौड़ रहा था |


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"चलो मैगनोलिया,जीप में बैठो एल विचार का अब वक्त नहीं है, जिंदगी भर सोचो।"
  मिस्टर जॉनसन ने स्वयं को तैयार किया और जीप का दरवाजा देखा, गाड़ी की ओर फिर से बढ़ गई | रेजिस्टर साहब किसी काम से होटल के अंदर रह गए थे l उसी समय एक ओर से दौड़ते हुए कलुआ पहुंच गए, उसने गरीब खून में डूबा पत्ता मैगनोलिया को थमाया | मैगनोलिया ध्यान से पत्ते में लिखे कुछ शब्दों को पढ़ने लगी - "डियर मैगनोलिया, मेरी नजरों से दूर होता है मैं सूर्यावलोकन स्थान पर मृत्यु को गले लगा लूंगा l तुम सदा खुश रहो, यही मेरी कामना है।

                    
                        माइकल
   "मैं भी आ रही हूं, जल्दी मत करना"-

लगभग हिलती हुई मैगनोलिया ने लोन के एक ओर बंधे पर अपने सुख-दु:ख के दोस्त अश्व को फिर उस पर सवार बेताशा भागी ले लिया। अन्यत्र साहब चिल्लाते ही रह गए -  
   "बेटी रुको, मत जाओ! यह नासमझी ठीक नहीं"|
  लेकिन उनकी आवाज बंगले तक ही रह गई। यहां मैगनोलिया घोड़े को दौड़ाया जा रहा था,लगता था उसने अपना होशो हवास खो दिया हो। मिस्टर जॉनसन क्रोध से जल-भुन गए। उन्होंने कहा- ''अंकल वो मनकू से मिल गया है, वो अभी तक जिंदा है। मैं अब मार कर ही रहूंगा।''
  फिर तो वह भी जीप में उस जगह की ओर चला गया। रजिस्ट्रार साहब किंकर्तव्यविमूढ़ से देखते ही रह गए।
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  "रुक जाओ, माइकल! डायर! मैं भी आ रही हूं। घबड़ाना नहीं" -
    मैगनो दौड़ते हुए मनकू माँझी का अंतिम दृश्य देखकर चिल्लाई। लेकिन उसे देखते ही मनकू मांजी ने निम्नतम घाटी में हलचल मचा दी। कुछ बेकार के बाद मैगनोलिया ने भी घोड़े समेत एक ही जगह से नीचे गिरा दिया।
  "धप" - जिसकी आवाज के साथ ही सब कुछ शांत हो गया। उनका प्यार वैली के गर्भ में विलीन हो गया। जीवित जीवन पर वे दोनों,जो मिल नहीं पाए ! मार्कर दोनों मिल गए ! दुनिया तो प्यार को सहन नहीं करती,परन्तु मौत इतनी उदार है कि प्यार की दो मिसालें सरलता से मिलती हैं।
  मिस्टर जॉनसन साक्षात् अवलोकन ही रह गया। उसके आसपास कुछ ग्रामीण भी बने थे,फिर तो जैसे सब पर पागलपन सवार हो गया। लोग स्टोन बार्ने लगे उसकी जीप पर। घबड़ाकर मिस्टर जॉनसन ने जीप का इंजन पलटा। फिर उसने इलाके की तरफ जीप दौड़ाई।


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कथा के मोती कर्ण रंध्रों में संग्रहीत बोरा समय को जैसे भूल गया था। बुजुर्गों के मुख ने विश्राम लिया और उनके अंतर्मन को बाहर की ओर घुमाया गया। उषा की लालिमा गगन मंडल में छा गई थी। वह कुछ कहना ही चाहता था कि बुजुर्गों ने रूंधे कंठ से कहा - "फिर साहब ने उस जगह का नाम 'मैगनोलिया पॉइंट' रख दिया।"
   "ओह" - सौरभ के मुख से निकला। अब तक बुजुर्गों का पार्टनर भी बाहर की ओर चला गया था। उसने चित्रांकनकर्ता ने कहा -   
   "अरे कहानी सुनाते तो सवेरा हो गया। बेटा तुम शौच आदि से निवृत्त हो जाओ। मैं कह रहा हूं, गांव का कोई आदमी तुम्हें नेतरहाट स्कूल पहुंचा देगा।"
  सौरभ ने उस वृद्ध की आज्ञा मानी कुछ घंटों के बाद वह वृद्ध की उपाधि लेकर विद्यालय की ओर जा रहा था। उस ग्रामीण वृद्ध के द्वारा वर्णित विचित्र कथा उस के मानस पटल में अंकित मन को व्यथित कर रही थी।
                             समाप्त 


                                 
                       निर्मलाकर्ण

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5 Comments

Anjali korde

15-Sep-2023 12:31 PM

V nice

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Babita patel

14-Sep-2023 11:09 AM

Nice

Reply

hema mohril

13-Sep-2023 07:38 PM

Awesome

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